पार्टी में नेताओं की दूसरी श्रेणी है, उनमें कोई भी ऐसा नहीं है, जिसका कद अटल क्या, आडवाणी के बराबर हो। इस संघर्ष में जब पार्टी कमजोर होगी और ऐसे में उसमें संघ का हस्तक्षेप बढ़ेगा।
लोकसभा चुनावों में हार को लेकर भारतीय जनता पार्टी में मचा घमासान और तेज हो गया है। इसका कारण है पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के निकटतम रणनीतिकार सुधींद्र कुलकर्णी द्वारा किए गए कुछ रहस्योद्घाटन। उन्होंने पार्टी की हार के लिए नेतृत्व और संघ को निशाने पर लिया है और कहा है कि दोनों ने आडवाणी को कमजोर और असहाय बनाया। पार्टी के अनेक नेता इस टिप्पणी से बौखला उठे हैं, जिससे साबित होता है कि बात में कुछ दम है। राजनीतिक दलों में असुविधाजनक बयान को निजी विचार कहकर टाल दिया जाता है। भाजपा ने इससे अपने को अलग कर लिया है। आडवाणी भी इससे सहमत नहीं हैं। यह उनकी मजबूरी है। फिर भी लोग यही कहेंगे कि आडवाणी की इसमें कहीं न कहीं सहमति है, क्योंकि कुलकर्णी चुनावों के दौरान पार्टी के ‘वार रूमज् की कमान संभाले हुए थे। ऐसा आदमी अगर कुछ कह रहा है तो उसमें ‘कुछज् तो सच्चाई होगी। जिन्ना प्रकरण में भी कुलकर्णी ने पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए मुसीबत पैदा कर दी थी। चुनाव परिणाम आने के बाद ही पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने दबी जुबान से यह कहना शुरू कर दिया था कि हिंदुत्व के रास्ते से भटकने के कारण ही उसे हार का सामना करना पड़ा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पार्टी को अपनी मूल विचारधारा पर लौटने के लिए कहा है। वैसे चुनाव अभियान के दौरान भी पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर भी उलझन में ही रही और कोई स्पष्ट रुख नहीं अपना सकी। वह मुद्दों की तलाश में ही भटकती रह गई। संघ के नेताओं में एक वर्ग ऐसा है जो यह मानता है कि अल्पसंख्यकों का वोट मिले बिना पार्टी सत्ता में नहीं आ सकती है। कुछ ने तो इस दिशा में प्रयास शुरू कर दिए हैं। असलियत यह है कि भारतीय जनता पार्टी में शीर्ष नेतृत्व को लेकर बहुत दिनों से सवाल उठ रहे हैं। अटल के बाद आडवाणी ने संभाला लेकिन अब आगे कौन संभालेगा? इन्हीं सवालों में उलझी पार्टी को जब चुनावों में कांग्रेस के हाथों करारी शिकस्त मिली तो नेतृत्व की यह लड़ाई बाहर आ गई है। पार्टी में नेताओं की दूसरी श्रेणी है, उनमें कोई भी ऐसा नहीं है, जिसका कद अटल क्या, आडवाणी के बराबर हो। इस संघर्ष में जब पार्टी कमजोर होगी और ऐसे में उसमें संघ का हस्तक्षेप बढ़ेगा। अगर एक बार पार्टी संघ के चक्कर में फंस गई तो उसका बाहर निकलना मुश्किल हो जाएगा और तब उसका राजनीतिक लक्ष्य भी संघ ही निर्धारित करेगा।
(आज समाज से साभार)
1 comment:
सारे विवादों की जङ ये श्रीमान कुलकर्मी है...इन्हें विचारधारा से कोई लेना देना नहीं है...इन्होने अडवाणी जी को प्रधानमंत्री बनाने का एक रोङ मैप बनाकर दिया जो कि उन्हें और पार्टी को गर्त मैं ले गया ...पर अभी भी हमारेो माननीय प्रधानमंत्री इन वैटिंग को इन पर पूरा भरोसा है...और वे लोग विश्वास के काबिल नहीं जो कि पुरा जीवन पार्टी के नाम कर चुके ैहं..भगवान अडवाणी जी को सद्बुद्धी दे...
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