Wednesday, March 18, 2009

राजनीति का बेशर्मी से पुराना नाता रहा है


राजनीति की बेशर्मी से सांठगांठ कोई नई बात नहीं है। जैसे-जैसे राजनीति शुरू होती है, बेशर्मी खुद ही धीरे-धीरे प्रवेश करने लगती है। उसका (बेशर्मी) माध्यम राज ठाकरे, बाल ठाकरे, आजम खां जसे कोई भी नेता हो सकते हैं। इस बार माध्यम बने हैं वरुण गांधी। जो देश में काफी सम्मानित गांधी परिवार के ‘सम्मानितज् सदस्य हैं। साथ ही जानवरों के हक में आवाज उठाने वाली मेनका गांधी के पुत्र हैं।
यहां सवाल उठता है कि राजनीति के क्षेत्र में आए दिन होने वाली इस तरह की भड़काऊ बयानबाजी का क्या उद्देश्य है? इसके जवाब के लिए वरुण गांधी की अभी तक की राजनीति और उनके राजनीतिक प्रभाव का अध्ययन करना होगा। वरुण गांधी के पिता संजय गांधी को 1970 से 80 के बीच के समय का काफी तेजतर्रार नेता माना जाता था। वह मारुति की स्थापना के समय विवादित हुए। साथ ही दिल्ली की स्लम बस्तियों की सफाई और नसबंदी कानून को लेकर काफी विवादों और चर्चा में भी रहे। अपने समय में संजय गांधी काफी चर्चित थे तो इमरजेंसी ने उन्हें काफी ताकतवर भी बना दिया था। अगर वरुण गांधी की पिता से तुलना की जाए, तो किसी भी मामले में वह उनके आस-पास भी नहीं दिखाई देते। तुलनात्मक रूप से देश में वह अधिक चर्चा में नहीं हैं। भारतीय जनता पार्टी ने भी उन्हें एक क्षेत्र में सीमित कर दिया है।
ऐसे में वरुण गांधी में निराशा का होना भी स्वाभाविक भी है। इसके विपरीत उनके भाई (तहेरे) राहुल गांधी को हर जगह तवज्जो मिलती है। इसलिए शिखर पर पहुंचने की जल्दी ने शायद वरुण को यह भड़काऊ बयान देने के लिए मजबूर किया हो। बहरहाल, अगर वरुण गांधी ने इस तरह के भड़काऊ बयान दिए हैं, तो वह काफी हद तक अपने उद्देश्य में कामयाब भी हुए हैं। मीडिया में मिली इतनी चर्चा (नकारात्मक) के बाद अब देश भर में उन्हें हर कोई जान गया होगा।
वरुण गांधी के लिए मेरी सलाह है कि संयम से काम लें। शिखर पर पहुंचने के लिए अभी काफी उम्र बाकी है।

Monday, March 16, 2009

पत्रकारिता में सभी उम्मीद खत्म नहीं होनी चाहिए

समाचारों में बरकरार है पाठकों की रुचि : रिपोर्ट


पत्रकारिता जगत की हालत भले ही खराब हो लेकिन अभी उम्मी कायम रहनी चाहिए। फिलहाल समाचारों में पाठकों की रुचि कम होती नहीं दिख रही है।
न्यूयॉर्क में प्रोजेक्ट फार एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म ने न्यूज मीडिया की स्थिति पर अपनी छठीोर्षिक रिपोर्ट में कहा है कि कई समाचार संगठनों का व्यासायिक ढांचा टूटता नजर आ रहा है लेकिन इस बात के कम ही संकेत हैं कि पाठकों की समाचारों में रुचि कम हो रही है। पिछले कुछ महीनों में चार समाचारपत्र कंपनियों कारण संरक्षण की मांग की और डेनर में राकी माउंटेन ने अपना प्रकाशन बं कर यिा। लेकिन जब ऑनलाइन पाठकों की संख्या की ृष्टि से ेखा गया तोी न्यूयॉर्क टाइम्स औरोशिंगटन पोस्ट के पाठकों की संख्या अब तक र्साधिक पाई गई। प्रोजेक्ट निेशक टाम रोसेंसियल ने यह जानकारीी। रिपोर्ट में बताया गया है कि शीर्ष 50 ऑनलाइन न्यूज ेबसाइटों के पाठकों की संख्या में र्ष 2008 में 27 फीसी का इजाफा हुआ। उन्होंने कहा कि यह उद्योग म नहीं तोड़ रहा है। यह उद्योग आधार से उखड़ने की स्थिति में है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरनेट के अलाा केबल न्यूज एक ऐसा सेक्टर है जो तरक्की कर रहा है और इसका श्रेय राष्ट्रपति चुना को मुख्य रूप से जाता है।

Monday, March 2, 2009

मीडिया और जान पहचान
मीडिया की दुनिया भी अजीब है...बुद्धजीवी लोगों की दुनिया... दूसरों को सीख देनेवालों की दुनियादूसरों को सिखाने वाले क्या ख़ुद सीख पाते हैं ?सिद्धांत और व्यवहार में अन्तर ... दूसरी ओर भाई भतीजा वाद ...मीडिया की दुनिया वही है जहाँ कोई नहीं पूछता आपका ज्ञानबस आपकी हो कोई जान या पहचान।संजीत