Friday, June 26, 2009

खुशखबरी... अब छात्रों को नहीं करनी पड़ेगी आत्महत्या


आम तौर पर जनवरी-फरवरी के महीने में दसवीं की परीक्षा का भूत विद्यार्थियों के साथ ही अभिभावकों पर भी सवार हो जाता है। घर में पूरी तरह से तनाव का माहौल बन जाता है।


देश में शिक्षा और उसके स्तर में सुधार के बारे में बहस तो कई बार हो चुकी है लेकिन कोई सार्थक ठोस कदम नहीं उठाया गया। उच्च शिक्षा पर ज्यादा जोर दिया जाता है लेकिन सबसे ज्यादा सुधार की आवश्यकता स्कूली शिक्षा प्रणाली में है, जिस पर बच्चों का भविष्य पूरी तरह निर्भर करता है। इस दृष्टि से प्रोफेसर यशपाल की अध्यक्षता में गठित समिति ने जो रिपोर्ट दी है, उसमें दसवीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त कर मूल्यांकन की वैकल्पिक व्यवस्था की बात की गई है। यह निश्चय ही एक ऐतिहासिक कदम होगा और छात्र-छात्राओं को बोर्ड के हौव्वे से बचाने का काम करेगा। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। आम तौर पर जनवरी-फरवरी के महीने में दसवीं की परीक्षा का भूत विद्यार्थियों के साथ उनके माता-पिता पर भी सवार हो जाता है। घर में पूरी तरह से तनाव का माहौल बन जाता है। इसका सबसे प्रमुख कारण है कि आजकल परीक्षा में प्राप्तांकों का महत्व बहुत बढ़ गया है। उसी के आधार पर विद्यार्थी की आगे पढ़ाई के बारे में तय होता। नई व्यवस्था से परीक्षा के दौरान तनाव और बाद में कम अंक आने पर विद्यार्थियों द्वारा आत्महत्या जसी प्रवृत्ति पर रोक लगेगी। रिपोर्ट के अनुसार ज्ञान अर्जन पीड़ादायक न हो, इसकी व्यवस्था की जानी चाहिए। बोर्ड की परीक्षा समाप्त करना इस दिशा में पहला कदम होगा। सरकार अब इस बारे में राज्य सरकारों, परीक्षा बोर्डो और विद्यार्थियों के माता-पिता से सलाह लेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार के सौ दिन के एजेंडे में इसे मूर्तरूप दिया जा सकेगा। यशपाल समिति ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद को समाप्त कर राष्ट्रीय उच्च शिक्षा और शोध आयोग बनाने का सुझाव दिया है। यह तो बहस का विषय है, जो लंबा खिंच सकता है। यह कितनी बड़ी विडंबना है कि आजादी के 62 वर्ष हो रहे हैं और अभी शिक्षा की वही व्यवस्था लागू है जो लार्ड मैकाले ने 1835 में शुरू की थी। हम लगभग पौने दो सौ साल से अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली में उलङो हुए हैं। कहने के लिए हमारी अपनी व्यवस्था नहीं है। अब एक महत्वपूर्ण सुझाव सामने आया है तो इसके क्रियान्वयन के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए, क्योंकि ऐसे मौके बार-बार नहीं आते।