Thursday, July 9, 2009

जनता भुगतेगी मेनका और वरुण को जिताने की सजा

यह विडंबना ही है कि सत्ता पक्ष को नहीं जिताने की सजा क्षेत्र की जनता को ही भुगतनी पड़ती है। जबकि इन क्षेत्रों की कीमत पर कुछ क्षेत्रों को चमका दिया जाता है। अमेठी, रायबरेली इसके बड़े उदाहरण हैं। देश को सबसे अधिक प्रधानमंत्री देने की खुशफहमी पालने वाला उत्तर प्रदेश इसी दौर से गुजर रहा है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो पूरे उत्तर प्रदेश को ही इसकी सजा दी जा रही है। पहले भी सत्तापक्ष को नहीं जिताने वाले क्षेत्रों को विकास की गंगा से महरूम किए जाने की परंपरा रही है। लेकिन क्या यह सही है? इस तरह की ब्लैकमेलिंग से जनता के बीच सरकार की छवि बेहतर हो सकती है।
एक दो ‘अनुकंपाओंज् को छोड़ दें तो इस बार के रेल बजट में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड आदि राज्यों को अनदेखी कर दी गई है। इन में उत्तर प्रदेश का तराई क्षेत्र सबसे ऊपर आता है। तराई क्षेत्र (पीलीभीत, बरेली, शाहजहांपुर, आंवला, बदायूं, टनकपुर, लखीमपुर, गोला, मैलानी आदि।) को दुनिया के सबसे बड़े गन्ना, गेहूं और उत्पादक क्षेत्रों में गिना जाता है। इस क्षेत्र की सैकड़ों किलोमीटर लंबी छोटी रेल लाइन को ब्राड गेज में बदलने का प्रस्ताव दशकों पुराना है। इस पर कई बार सर्वे भी किया जाता है। ब्राड गेज से इस क्षेत्र के किसानों और काफी व्यापारियों को काफी फायदा होगा। लेकिन ममता बनर्जी को रेल बजट बनाते समय इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों बंगालियों की भी याद नहीं आई। इस क्षेत्र में राजनीतिक दल ब्राड गेज के मुद्दे पर राजनीति तो करते रहते हैं, लेकिन बजट के समय यह मुद्दा प्रभावी रूप से नहीं उठाते।
इसे वरुण गांधी और मेनका गांधी से जोड़कर देखें तो सही भी है कि जनता उन्हें जिताने की भारी कीमत चुका रही है। लेकिन सरकारों द्वारा क्षेत्र की जनता से इस तरह बदला लेना क्या उचित है। जनता सब देख रही है। इस ब्लैकमेलिंग को जनता भी देख रही है। यह ब्लैकमेलिंग अधिक दिन नहीं चलने वाली।