Wednesday, May 6, 2009

कांग्रेस की ऐतिहासिक बेशर्मी

शायद कांग्रेस की इस बदहाली पर मैं कुछ देर से गौर कर रहा हूं, लेकिन यह सही है कि सत्ता के लालच में 15वीं लोकसभा के इस चुनाव में कांग्रेस ऐतिहासिक बेशर्मी पर उतर आई है। वैसे अब तक धर्म निरपेक्ष दलों की अगुवा यह पार्टी भाजपा और अन्य कुछ हिंदूवादी दलों (शिवसेना आदि) को छोड़कर अप्रत्यक्ष रूप से हर दरवाजे पर अपना सिर पटक चुकी है। इतना ही नहीं कांग्रेस द्वारा भाजपा के नेतृत्व वाले राजग के साझीदार नीतीश कुमार को अच्छा नेता करार दिया जा चुका है। नीतीश की प्रशंसा करते समय कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अपने पुराने दोस्त लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान की दोस्ती तक को ताक पर रख दिया। इसके साथ जयाललिता से दोस्ती करने को बेकरार कांग्रेस करुणानिधि को ठेंगा दिखाने को तैयार नजर आ रही है। परमाणु करार को लेकर कांग्रेस ने वाम दलों की ठोकर खाई थी, लेकिन सत्ता को लेकर कांग्रेस फिर से उनके तलुए चाटने को तैयार है। लेकिन वाम दल हैं कि मानते ही नहीं।
बहरहाल, कांग्रेस को लोकसभा चुनाव के बाद होने वाली दुर्दशा का अंदाजा हो गया है। लेकिन सत्तालोलुपता ने उसे इस कदर बेशर्म बना दिया है कि जिन्हें वो कल तक फूटी आंख नहीं सुहाते थे आज उन्हें गले लगाने को भी तैयार है।
1950 से अब तक की कांग्रेस पर गौर करें तो पाते हैं कि इस पार्टी की इतनी बुरी गत अभी तक नहीं हुई। क्षेत्रीय दलों के सहारे के बिना कांग्रेस एक कदम भी चलने में सक्षम नजर नहीं आ रही है। चुनाव से पहले मुलायम, लालू और पासवान ने उन्हें ठोकर मारी थी। तो अब वाम दल उनकी ओर मुंह करने को तैयार नहीं है।