Saturday, February 7, 2009

गरीब की बेटी और भारत

गरीब की बेटी और भारत

मुंबई हमला



लेख का शीर्षक पढ़कर शायद आप हैरत में होंगे कि गरीब की बेटी और भारत में क्या ताल्लुक हो सकता है? अगर हम मुंबई हमलों के बाद के हालातों पर गौर करें तो दोनों में काफी हद समानता है। भारत में जब किसी गरीब की बेटी का बलात्कार होता है, तो न्याय के लिए भटक रहे ‘गरीब बापज् से हर कोई सबूत मांगता है। ‘गरीब बापज् सबूत देता-देता मर जाता है, लेकिन हर बार सबूत कम ही पड़ जाते हैं। और दबंग खुलेआम घूमते रहते हैं। एेसा भारत में अक्सर होता है, लेकिन अब दुनिया में भारत के साथ यही हो रहा है।
मुंबई हमले को लगभग ढाई माह से भी अधिक समय बीत चुका है और भारत अभी तक सबूत पेश कर रहा है। पाकिस्तान को मुंबई पर आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार ठहराने के लिए हर सबूत ‘नाकाफीज् सबूत हो रहा है। अमेरिका सहित पूरी दुनिया यह तो मानती है कि इसमें पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों का हाथ है और वहीं की जमीन का प्रयोग किया गया। लेकिन अमेरिका सहित पूरी दुनिया को यह मंजूर नहीं कि भारत पाकिस्तान के आतंकी शिविरों पर कोई सैन्य कार्रवाई करे।
यहां सवाल उठता है कि क्या भारत उस ‘गरीब बापज् की तरह कमजोर है। इसका जवाब नकारात्मक ही होगा, लेकिन हम हमेशा कमजोर ही क्यों नजर आते हैं। क्यों हमें ही हर बार सबूत देना पड़ता है। क्या वर्ष 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकी हमले के बाद इराक और अफगानिस्तान पर हमला करने से पहले अमेरिका से किसी ने सबूत मांगा था। आतंकवाद के खिलाफ जंग के नाम पर अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में सैकड़ों आतंकियों का सफाया कर दिया, वो बात अलग है कि इस ‘जंगज् में लगभग छह लाख आम इराकियों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। अफगानिस्तान में भी बड़ी संख्या में बेगुनाह मारे गए। अफगानिस्तान में अमेरिकी जंग अभी तक जारी है और पाकिस्तान में आतंकी शिविरों पर भी नाटो देशों की सेनाएं हमले कर रही हैं। इस सबके बावजूद अमेरिकी सैन्य कार्रवाई के खिलाफ दुनिया में किसी ने आवाज उठाने की हिमाकत नहीं की।
वहीं, भारत की तुलना में काफी छोटे माने जाने इजरायल ने फलस्तीन पर हमला करने से पहले किसी को सबूत देने की जरूरत ही नहीं समझी। इजरायल के बारे में तो यह तक कहा जाता है, ‘जब फलस्तीन या गाजा पट्टी की तरफ से एक पत्थर आता है तो इजरायल की तोपें फलस्तीन पर गोले बरसाने लगती हैं।ज् यहां इसका उल्लेख करना भी जरूरी है कि इजरायल अपने नागरिकों की सुरक्षा के प्रति काफी सतर्क है। मुंबई हमले के दौरान जब कुछ इजरायली नागरिक आतंकियों के चंगुल में फंसे हुए थे, तब इजरायल ने आतंकवादियों से निबटने के लिए अपने कमांडो भेजने का प्रस्ताव भारत सरकार के पास रखा था। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी किरकिरी होने के डर से भारत ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
लब्बोलुआब यही है कि मुंबई हमले के संबंध में भारत सरकार विदश नीति के स्तर पर अभी तक पूरी तरह विफल साबित हुई है। मुंबई पर हमला करके आतंकवादियों ने भारत की सुरक्षा में छेद किया। तो विदेश नीति के स्तर पर भी भारत की स्थिति ‘फिर वही ढाक के तीन पांतज् वाली रही। मुंबई हमले के ढाई माह बाद भी भारत अभी तक सबूत ही मुहैया करा रहा है। जबकि एक मात्र जिंदा सबूत (आतंकी) आमिल अजमल कसब को पाकिस्तान अपने देश का नागरिक होने से इनकार कर रहा है।
भारत अभी तक सैन्य ताकत के मामले में पाकिस्तान से काफी मजबूत माना जाता रहा है, दुनिया भी इसको हमेशा भी स्वीकार करती आई है। लेकिन मुंबई हमले जसी किसी भी घटना के बाद भारत कमजोर सा ही नजर आता है। भारत की समूची ताकत बेमतलब नजर आती है। इन हालातों में भारत का ‘परमाणु शक्तिज् होने का दावा ‘हाथी के दांतज् की तरह नजर आता है। आखिर हम कब तक दुनिया में इसी तरह ‘kamajor बने रहेंगे।