Monday, June 15, 2009

दिल्ली तक पहुंचे नक्सली

नक्सलवादी अपने को भूमिहीन मजदूरों का हितैषी बताते हैं और शोषण मुक्त समाज की स्थापना की बात करते हैं। लेकिन अब ये आम लोगों से पैसे भी वसूलने लगे हैं।

रियाणा के कुरुक्षेत्र से पिछले दिनों 17 नक्सलियों की गिरफ्तारी और उनके मुखिया का यह खुलासा कि तीन महीने से छह नक्सली समूह राज्य में सक्रिय हैं, एक बहुत बड़े खतरे की ओर संकेत करता है। पुलिस ने यह भी माना है कि राज्य के पानीपत, सोनीपत, रोहतक, जींद, कैथल, नरवाना और हिसार में उनका नेटवर्क फैला हुआ है। हैरानी यह है कि झारखंड, बिहार, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ होते हुए नक्सली यहां तक पहुंच गए और सुरक्षा एजेंसियों को इसकी भनक भी नहीं लगी। झारखंड में अभी हाल में नक्सलियों ने दो जबदस्त हमले किए जिसमें पुलिस और सीआरपीएफ के 21 जवान शहीद हो गए और कई घायल होकर अस्पताल में मौत से लड़ रहे हैं। नक्सलवादियों का राजधानी के इतने निकट पहुंचना पूरे देश में लाल गलियारा बनाने की साजिश का ही एक हिस्सा है। 42 वर्ष पहले पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में किसान विद्रोह से शुरू हुआ नक्सलवाद अब तक देश के 630 में से 180 जिलों में फैल चुका है। जबकि 2001 में नक्सली हिंसा से केवल 56 जिले प्रभावित थे। इसी से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि एक दशक से भी कम समय में वह कितनी तेजी से बढ़ा है। नक्सलवादी अपने को भूमिहीन मजदूरों का हितैषी बताते हैं और शोषण मुक्त समाज की स्थापना की बात करते हैं। ये अधिकतर जमीदारों पर हमले करते हैं, लेकिन अब ये आम लोगों से पैसे भी वसूलने लगे हैं। इधर पुलिस और सुरक्षाबलों पर इनके हमले बढ़ गए हैं। पिछले वर्ष नक्सलियों-माओवादियों ने पूरे देश में एक हजार से अधिक हमले किए। झारखंड में तो इनकी जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि विभिन्न राजनीतिक दलों को भी इनसे खतरा बढ़ गया है। राज्य में मार्च 2006 में झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सुनील महतो, 2007 में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के पुत्र और पिछले वर्ष जेडीयू के विधायक रमेश मुंडा की हत्या माओवादियों ने की। देश के विभिन्न राज्यों में सक्रिय इन गुटों में बीस हजार से अधिक गुमराह युवक-युवतियां शामिल हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री ने इससे निपटने के लिए दोहरी रणनीति बनाने की घोषणा की है। पहला, प्रभावित क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित करने के साथ कानून-व्यवस्था बहाल की जाएगी और दूसरा गुमराह युवकों की यह विश्वास दिलाना कि हिंसा से समस्या हल नहीं हो सकती। नक्सलियों के प्रभाव को देखते हुए तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो यह आतंकवाद से भी बड़ा खतरा बन सकता है।
(आज समाज से साभार)

No comments: